Saturday, November 11, 2017

21

निगाहों निगाहों में मिलते रहे हम
न तुमने कहा कुछ न मेने सुनाया
वो दूरी कहाँ थी, वो कुछ फासले थे
न तुम आगे आयी न मैं आगे आया

न तुम थीं अकेले, न मैं था अकेले
थे चारों  तरफ बस सवालों के घेरे
खुद ही सवालों में उलझे रहे हम
न तुमको मिला कुछ न मैंने  ही पाया.

लकीरों को दोषी कहें भी तो कब तक
ये हालात आखिर सहें भी तो कब तक
ये बातें किताबी सबक बन रहीं हैं
न अपना है कोई न कोई पराया.

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